Saturday, February 12, 2011

गुरुजी बन गए मैनेजमेंट गुरु


मुकेश कुमार, लखीसराय. : गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु के सिद्धांत पर चलने वाले गुरुजी यानी शिक्षक आज दोराहे पर खड़े हैं। उनके पास शिक्षा दान के अलावा ढ़ेर सारे काम हैं। सरकार की नई व्यवस्था ने उन्हें गुरू कम किरानी और ठेकेदार की भूमिका में ला खड़ा किया है। यूं कहें कि गुरूजी अब मैनेजमेंट गुरू बन गए हैं। मध्याह्न भोजन का हिसाब-किताब, स्कूल भवन का निर्माण एवं विभागीय आदेश के आलोक में प्रतिदिन प्रतिवेदन तैयार करना और इससे फुर्सत मिले तो जनगणना व बीएलओ जैसे महत्वपूर्ण कार्यो का निपटारा करना उनकी दिनचर्या बन चुकी है। ऐसे में बच्चों को गुणात्मक शिक्षा मिल पाना सवालों के घेरे में है। इसका अहसास गुरुजी को है मगर व्यवस्था के आगे वे लाचार हैं।
कमजोर हुई रिश्ते की डोर
गुरु-शिष्य के जिस रिश्ते की दुहाई पहले दी जाती थी, जिस गुरु को ब्रह्मा और विष्णु से ऊपर देखा जाता था। आज उस रिश्ते की डोर कमजोर हो गई है। गैर शैक्षणिक कार्य में लगने के कारण बच्चों से उनकी दूरियां तो बढ़ ही रही हैं, किताबों से भी उनका मोहभंग होता जा रहा है। कक्षा में शिक्षा दान देने की बजाय ड्यूटी पूरी करने की खानापूरी की जा रही है।
पड़ रहा शिक्षा पर असर
शिक्षकों के गैर शैक्षणिक कार्य में लगने से शिक्षा पर प्रतिकूल असर पर पड़ रहा है। कभी बीएलओ तो कभी जनगणना की ड्यूटी में व्यस्त शिक्षकों की मानें तो कार्यो के बोझ से मानसिक रूप से दबे रहने एवं अधिकारियों द्वारा हर रोज मांगी जाने वाली रिपोर्ट व समीक्षा बैठकों में ही उनका अधिकांश समय गुजर जाता है।
बन गए मैनेजमेंट गुरू
यह जरूर है कि शिक्षा विभाग ने शिक्षकों को केवल शिक्षक नहीं रहने दिया है बल्कि उन्हें मैनेजमेंट गुरू बना दिया है। हकीकत है कि स्कूलों में गुरुजी का वक्त अब दाल, चावल, सब्जी के हिसाब-किताब तथा भवन निर्माण के सीमेंट, बालू व छड़ के हिसाब में ही ज्यादा बीतता है।
कौन है जिम्मेदार
आज किरानी और ठेकेदार की भूमिका में अगर गुरुजी नजर आ रहे हैं तो इसके लिए कौन जिम्मेदार हैं। कहा जाए कि विभाग दोषी है तो यह ठीक होगा। विभाग ने अगर एमडीएम और भवन निर्माण की जिम्मेदारी सौंप दी तो शिक्षकों में गलत करने की हिचक टूट गयी और वे शिक्षक से व्यवसायी हो गये।
क्या कहते हैं अधिकारी
जिला शिक्षा पदाधिकारी रामसागर सिंह कहते है कि शिक्षकों की मानसिकता में बदलाव व व्यवसायिकता के प्रति उनका खिंचाव शिक्षा व्यवस्था में गिरावट का मूल कारण है। अधिकारी स्वीकारते हैे कि शिक्षको को गैर शैक्षणिक कार्यो में लगाने से शिक्षा पर इसका खासा प्रभाव पड़ रहा हैi

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