Wednesday, September 29, 2010

लाल आतंक : जेल की सुरक्षा पर खतरा बरकरार

लखीसराय। कजरा मुठभेड़ के पहले से ही नक्सलियों ने लखीसराय जेल, समाहरणालय और न्यायालय को उड़ा देने की धमकी दी थी। बाद में 29 अगस्त को एक बड़ी घटना हुई और आठ पुलिस कर्मी नक्सलियों की गोलियों के निशाने बने। तीन पुलिस कर्मी मौत के मुंह से किसी तरह बचकर निकले। इसके बावजूद जिला मुख्यालय पर से नक्सलियों की नजर नहीं हटी है। स्थानीय जेल में बंद साथी नक्सलियों को छुड़ाने के फिराक में संगठन के लोग लगे हैं। यही वजह है कि वहां की हर गतिविधि की जानकारी नक्सली ले रहे हैं। शनिवार की शाम पुलिस गिरफ्त में आया नक्सली भोला महतो इसी मंशा से एसपी आवास, समाहरणालय और कोर्ट एरिया का चक्कर लगा रहा था। हालांकि इसके बाद हरकत में आया जिला प्रशासन ने तीन हार्डकोर नक्सलियों को भागलपुर सेंट्रल जेल रविवार की सुबह भेज दिया। मगर अब भी एक दर्जन से अधिक नक्सली यहां के जेल में कैद है। ऐसे में अब भी नक्सली खतरा मंडरा रहा है।
गौरतलब है कि 05 सितंबर को जमुई में गिरफ्तार नक्सली पिंकू यादव एवं बहादुर यादव, कजरा में गिरफ्तार पैक्स प्रबंधक वेद प्रकाश एवं अंकज कुमार, चानन में गिरफ्तार कृष्ण कुमार कोड़ा उर्फ कृष्णा, 8 सितंबर को चानन थाना क्षेत्र के इलाके से गिरफ्तार चार नक्सली कपिल कोड़ा, शत्रुघ्न कोड़ा, विनोद मरांडी एवं राजेंद्र हेम्ब्रम, 13 सितंबर को जमुई से गिरफ्तार बडू कोड़ा उर्फ श्याम सुंदर कोड़ा, 23 सितंबर को भागलपुर में गिरफ्तार अमलेश कुमार सिंह उर्फ मनीष, कजरा क्षेत्र से गिरफ्तार गोपाल हेम्ब्रम एवं राजेश मुर्मू 29 अगस्त को कजरा नक्सली-पुलिस मुठभेड़ मामले में लखीसराय जेल में कैद है। इसके अलाव पूर्व से ही जय पासवान सहित कुछ अन्य नक्सली स्थानीय जेल के अंदर है। इसमें से पिंकू यादव, बहादुर यादव, श्याम सुंदर कोड़ा उर्फ बडू कोड़ा, अमलेश कुमार सिंह उर्फ मनीष, जय पासवान, कपिल कोड़ा, शत्रुघ्न कोड़ा, विनोद मरांडी, राजेंद्र हेम्ब्रम, गोपाल हेम्ब्रम, राजेश मुर्मू आदि हार्डकोर नक्सली हैं जिसने बीएमपी के सीएसआई लुकस टेटे की हत्या की बात भी स्वीकारी थी। इधर उक्त नक्सलियों के लखीसराय जेल में बंद रहने के बाद से नक्सलियों की नजर जेल पर टिकी हुई है। अब वे अपने साथियों को छुड़ाने के फिराक में है। इसको लेकर सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लेने में संगठन जुट गया है।
Source:- Jagran

Monday, September 13, 2010

जंग-ए-आजादी की दास्तां कह रहा हाहा बंगला

लखीसराय। बड़हिया नगर पंचायत के वार्ड नंबर 6 स्थित हाहा बंगला आज भी जंग-ए-आजादी की दस्ता बयां कर रहा है। यहां आजादी के पहले गुलामी की जंजीर को तोड़ने के लिए रणनीति बनती थी। आज प्रशासन, जनप्रतिनिधियों एंव आम लोगों की उदासीनता के लिए जाना जाता है। यह ऐतिहासिक धरोहर आज हाहा बंगला के बदले भूत बंगला बनता जा रहा है। जानकारी के मुताबिक जंग-ए-आजादी की लड़ाई के समय इस हाहा बंगला की स्थापना बड़हिया के स्वतंत्रता सेनानियों एवं क्रांतिकारियों के द्वारा 1902 में की गयी थी। यहां क्रांतिकारियों की गुप्त बैठकें हुआ करती थी तथा रणनीतियां निर्धारित कर उंची इमारत से छिपकर गोरे फिरंगियों पर नजर रखी जाती थी। इस बंगले पर असहयोग आंदोलन के समय राष्ट्रीय पाठशाला की भी स्थापना की गयी थी। आजादी की लड़ाई के क्रम में यहां स्वामी सहजानंद सरस्वती, डा. श्रीकृष्ण सिंह, जयप्रकाश नारायण, गणेश दत्त सिंह, कार्यानंद शर्मा, दीपनारायण सिंह आदि राष्ट्रीय नेताओं का आगमन हुआ था। परंतु आजादी के बाद इस ऐतिहासिक बंगले की हालत बदतर होने लगी। जहां पहले देश की आजादी की चर्चा होती थी वहीं आज अपराध की चर्चा होती है। यह बंगला वीरान एवं मरम्मत एवं रख रखाव के अभाव में जर्जर हो गया है। क्षेत्र के बुद्धिजीवियों ने इस संबंध में बताया कि मां बाला त्रिपुर सुंदरी मंदिर के बाद बड़हिया में अगर कोई ऐतिहासिक स्थल है तो वह हाहा बंगला है। अगर प्रशासनिक स्तर से इसके संरक्षण एवं जीर्णोद्धार की पहल की जाए तो इस ऐतिहासिक विरासत को भविष्य के लिए संजोया जा सकता है। 
सूत्र :- जागरण 

Saturday, September 4, 2010

अब गुमराह की नीति पर माओवादी

Sep 04, 01:13 am
लखीसराय। जिले के कजरा थाना क्षेत्र के कानीमोह के जंगलों में पुलिस-नक्सली मुठभेड़ में भारी सफलता हासिल करने के बाद नक्सली संगठन के सदस्य विगत पांच दिनों से पुलिस प्रशासन को गुमराह कर सुरक्षित ठिकाने पर पहुंचने की जुगत में लगे हुए हैं। इस जंगल के पहाड़ों पर अब भी पांच सौ से अधिक नक्सली मौजूद हैं। अब वे वहां से निकलने की जुगत में हैं। पुलिस प्रशासन की दृढ़ इच्छा शक्ति की कमी एवं ठोस रणनीति के अभाव में भले ही अभी तक नक्सली संगठन के सदस्य जान बचाने में सफल रहे हैं। परंतु नक्सली संगठन के सदस्य अभी तक सुरक्षित ठिकाने तक नहीं पहुंच पाए हैं। खासकर कजरा थाना क्षेत्र के सिमरातरी कोड़ासी गांव के समीप शुक्रवार को एक पुलिस जवान लुकस टेटे की लाश पाए जाने से यह तय है कि नक्सलियों द्वारा तीन अन्य बंधक बनाए गए पुलिस कर्मियों को भी कजरा के जंगलों में ही छिपाकर रखा गया है। लेकिन दृढ़ इच्छा शक्ति की कमी के कारण पुलिस प्रशासन अब तक नक्सलियों के विरूद्ध कार्रवाई करने की बात तो दूर बंधक बनाए गए पुलिस कर्मियों को खोजने तक का हिम्मत नहीं जुटा पायी है। इधर नक्सली संगठन के जोनल प्रवक्ता अविनाश मीडिया के माध्यम से बार-बार बंधक पुलिस कर्मियों के एवज में जेल में बंद आठ नक्सलियों को छोड़ने की मांग कर पुलिस प्रशासन को गुमराह करने में लगा है। इतना ही न हीं सर्च अभियान चलाने पर बंधक पुलिस कर्मियों की हत्या करने की भी धमकी दे चुका है। आश्चर्य की बात यह है कि गत गुरुवार को लगभग दो बजे नक्सली जोनल प्रवक्ता ने मीडिया को बताया कि उनकी मांग नहीं माने जाने के कारण माणिकपुर ओपी के एसएचओ अभय कुमार यादव की हत्या कर दी गयी है। उक्त खबर के बाद रात भर पुलिस प्रशासन एवं मीडिया कर्मी अभय की लाश के लिए भटकते रहे। परंतु शुक्रवार की सुबह सिमरातरी कोड़ासी के समीप पुलिस कर्मी लुकस टेटे की लाश पायी गयी। नक्सलियों द्वारा छोड़े गए पर्चे में तीन पुलिस कर्मियों माणिकपुर ओपी के एसएचओ अभय कुमार यादव, प्रशिक्षु अवर निरीक्षक रूपेश कुमार एवं एहतेशाम खान के जीवित रहने की बात कही गयी है। इससे साफ जाहिर होता है कि नक्सली संगठन के सदस्य पुलिस प्रशासन को गुमराह कर अपनी रोटियां सेंक रहा है।
Link :- Jagran