लखीसराय। पुराने मुंगेर जिले से पंद्रह वर्ष पूर्व अलग हुए लखीसराय जिले के सोलहवें स्थापना दिवस की तैयारी कर ली गई। शनिवार को जिला मुख्यालय में 16 वां स्थापना दिवस मनाया जाएगा। विगत पंद्रह वर्षो में विकास की बयार बही लेकिन यह जिला मानचित्र के अलावा और कही दिख नहीं रहा है। जहां जिलाधिकारी बैठकर विकास को आयाम देते हैं वह समाहरणालय भवन भी अब तक बनकर तैयार नहीं हो पाया है। जिलाधिकारी के अलावा पुलिस अधीक्षक को अपना आवास भी नसीब नहीं हो पाया है। जिले की सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मा जिन पुलिस जवानों के कंधे पर है उसके लिए पुलिस केंद्र को भी भवन नहीं हो पाया है। आधा दर्जन विभागों में स्थायी पदाधिकारी और उनके रहने के लिए सरकारी आवास नहीं है। जिले में जन प्रतिनिधियों एवं अधिकारियों की संवेदनहीनता एवं स्वार्थपूर्ण नीति के कारण अरबों रुपए विकास के नाम पर खर्च हुए लेकिन अनियमितता की शिकायत में कमी नहीं हुई। 03 जुलाई 1994 को तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने लखीसराय अनुमंडल को जिले का दर्जा प्रदान किया था। तब से अब तक डीएम, एसपी व डीडीसी कलेंडर की तरह बदलते रहे। विकास के नाम पर अनियमित विद्युत आपूर्ति, पेयजल के लिए हाहाकार, ग्रामीण क्षेत्रों में बदहाल शिक्षा एवं सड़क विकास का गवाह है। जिला मुख्यालय में डीएफओ कार्यालय, मत्स्य विभाग, राष्ट्रीय बचत, नलकूप विभाग संख्या- 1 आदि विभाग के पदाधिकारियों का पदस्थापन नहीं हो पाया है। वहीं उत्पाद, सहकारिता, खनन, आपूर्ति, परिवहन, कल्याण, सामाजिक सुरक्षा आदि विभागीय कार्यालय वर्तमान में समाहरणालय स्थित पुराने डीआरडीए अनुमंडल एवं एनआईसी भवन में चल रहा है। डीसीएलआर, डीआरडीए निदेशक, डीएसओ आदि पदाधिकारियोंको सरकारी आवास तक उपलब्ध नहीं है। सरकार द्वारा जिले में किशोर न्याय परिषद का गठन किया गया है लेकिन सुधार गृह नहीं है। लखीसराय शहर वर्षो से अतिक्रमण की जाल से निकलने का बाट जोह रहा है। ट्रैफिक व्यवस्था लुंज-पूंज है। अपराधियों के बढ़ते मनोबल एवं नक्सली गतिविधियों ने जिले वासियों की नींद हराम कर दी है। इसके बावजूद प्रशासनिक पदाधिकारी जिले में चौतरफा विकास का दावा कर रहे हैं।
सूत्र :- दैनिक जागरण
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